मकैवटी, एक मख़फ़ी बिल्ला/ Macavity the Mystery Cat (TS Eliot)

Tru Waters, Mystery Cat, 2017

मकैवटी एक मख़फ़ी बिल्ला है, बुलाते हैं उसे ‘पोशीदा पंज’,
ऐसा माहिर मुजरिम जो कानून को रखता है तंग,
CBI का सर चकराए, NIA की निकले सिर्फ दुहाई,
क्यूंकि जब पहुंचे मंज़र-ए-जुर्म, 
मकैवटी वहां है ही नहीं, भाई!

मकैवटी, मकैवटी, कोई दूसरा नहीं मकैवटी, 
तोड़ा हर इंसानी कायदा, भंग करता है ग्रेविटी,
उसकी उड़न शक्ति ने फ़क़ीरों की भी इर्षा जगाई,
क्यूंकि जब पहुंचो मंज़र-ए-जुर्म, 
मकैवटी वहां है ही नहीं, भाई!

खोज लो उसे तहखाने में, ढूंढ़ते रहो उसे बीच हवाएं,
कह तो चूका हूँ, पर फिर हूँ दोहराता,
मकैवटी वहां है ही नहीं, भ्राता!
गेरूआ सा रंग है उसका, बहुत लंबा पतला तन,
देखोगे तो पेहचान लोगे, उसकी आंखें हैं धंसी एकदम.

गुम्बद जैसा सर है उसका, लकीरों से भरी पेशानी,
कोट है उसका मटमैला सा, मूछों ने कभी कंघी न जानी.
इधर से उधर सर डोलता, जैसे मानो सांप,  
ये न सोचो उन्नीदा है, सब कुछ रहा है भाँप!

मकैवटी, मकैवटी, कोई दूसरा नहीं मकैवटी, 
बिल्लीनुमां शैतान है वो, और दुराचार का दानव भी,
मिल सकता है गली में, या चौक पे दे दिखाई,
पर जब जुर्म की होगा पर्दा फ़ाश,
मकैवटी वहां था ही नहीं, मेरे बाप!

ऊपर ऊपर से है वो क़ाबिल-ए-एहतराम
(कहते हैं ताश में चीटिंग के लिए बदनाम.)
न मिलेंगे उसके पदचिह्न IB की फाइलों में आम. 
और जब लुटी हुई हो रसोई, 
या गहनों के डिब्बा मैं मची खलबली,
या दूध हुआ हो लापता, 
या एक और कुत्ते का गला हो घुटा,
या चूरचूर हो पौधे-घर का शीशा, 
और जंगले का निकला हो हर रेशा
खुदा क़सम, यही रब की माया!
मकैवटी वहां था ही नहीं, भाया!

और जब MEA को अहदनामा हो नदारद,
या फिर नौसेना को कुछ मनसूबे न हों बरामद,
ज़ीने पर या कमरे मे कोई सबूत अगर दिखे,
तहक़ीक़ात करना है बिलकुल बेईमानी,
मकैवटी वहां था ही नहीं, जानी!

और जब नुक़सान का हुआ ख़ुलासा, तो ख़ुफ़िया पुलिस बसूरे,
‘मकैवटी की ही करतूत है ये’– पर वो रहा एक मील दूर परे!
आराम फ़र्माँ रहे होंगे कहीँ, या चाट रहे होंगे अपने पंजे,
या मसरूफ़ होंगे अलगाते हुए विस्तृत विभाजन के मसले.

मकैवटी, मकैवटी, कोई दूजा नहीं मकैवटी 
बेमिसाल है ये बिलोटा, बेज़ोड़ है उसकी चापलूसी, 
हमेशा पास रहे ग़ैर-हाज़री का एक बहाना, और कुछ फालतू भी,
पर जॉनसे वक्त भी करी गई हो करनी
मकैवटी वहां था ही नहीं, बेहनी!

कहते हैं के वो बिल्लियां, जिनकी काली करतूतें हैं मशहूर,
(याद करो दुधमल भांजा, याद रखो शेखु दुम-कट्टूर)
सब सिर्फ मुख़्तार ही रहे इसी बिल्लम के, जो रहेगा तमाम वख़्त,
उनकी सरगर्मियों का संचालक:
जुर्म की दुनिया में मोटाभाई का सच्चा भक्त!

अनुवाद: आयेशा किदवई

T.S. Eliot’s famous original poem is here.

This poem was translated for Anjum, while she was still here.
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